सदस्यसम्भाषणम्:Vipin kumar

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neetishatkam/ नीतिशतकम्[सम्पाद्यताम्]

नीतिशतकम् दिक्कालाद्यनवच्छिन्नानन्तचिन्मात्रमूर्तये । स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे ॥ - 1

My salutation to the peaceful light, whose form is only pure intelligence unlimited and unconditioned by space, time, and the principal means of knowing which is self-perception.


यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः । अस्मत्कृते च परिशुष्यति काचिदन्या, धिक्तां च तं च मदनं च इमां च मां च ॥ -2

जिस स्त्री से मैं प्रेम करता हूँ उसके ह्रदय में मेरे लिए कोई प्रेम नहीं है,बल्कि वह किसी और से प्रेम करती है,जो किसी और से प्रेम करता है, और जो स्त्री मुझसे प्रेम करती है उसके लिए मेरे ह्रदय में कोई स्नेह नहीं है। मुझे इन सभी से और खुद से घृणा है।

The woman whom I adore has no affection for me; she, however, adores another who is attached to some one else; while a certain woman is in love with me even when I do not reciprocate the feelings. Fie on her, on him, on the God of Love, on that woman, and on myself. मूर्खपद्धतिः

अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानलवदुर्विदग्धं ब्रह्मापि नरं न रञ्जयति ॥ -3


Hindi Translation of Bhartrihari Neeti Shatak Shlok 3-About Fools

एक मुर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक अधूरे ज्ञान से भरे व्यक्ति को भगवान ब्रम्हा भी नहीं समझा सकते, क्यूंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अँधा बना देता है।


प्रसह्य मणिमुद्धरेन्मकरवक्त्रदंष्ट्रांकुरात्

   समुद्रमपि सन्तरेत्प्रचलदूर्मिमालाकुलम् ।

भुजङ्गमपि कोपितं शिरसि पुष्पवद्धारये

   न्न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥ 


अगर हम चाहें तो मगरमच्छ के दांतों में फसे मोती को भी निकाल सकते हैं, साहस के बल पर हम बड़ी-बड़ी लहरों वाले समुद्र को भी पार कर सकते हैं, यहाँ तक कि हम गुस्सैल सर्प को भी फूलों की माला तरह अपने गले में पहन सकते हैं; लेकिन एक मुर्ख को सही बात समझाना असम्भव है।


लभेत सिकतासु तैलमपि यत्नतः पीडयत्

   पिबेच्च मृगतृष्णिकासु सलिलं पिपासार्दितः ।

कदाचिदपि पर्यटञ्छशविषाणमासादयेत्

   न तु प्रतिनिविष्टमूर्खजनचित्तमाराधयेत् ॥

अधिगतपरमार्थान्पण्डितान्मावमंस्था स्तृणमिव लघुलक्ष्मीर्नैव तान्संरुणद्धि । अभिनवमदलेखाश्यामगण्डस्थलानां

न भवति बिसतन्तुवरिणं वारणानाम् ॥[17]

Hindi Translation Of Neeti Shatak Shlok About Scholars किसी भी ज्ञानी व्यक्ति को कभी काम नहीं आंकना चाहिए और न ही उनका अपमान करना चाहिए क्यूंकि भौतिक सांसारिक धन सम्पदा उनके लिए तुक्ष्य घास से समान है। जिस तरह एक मदमस्त हाथी को कमल की पंखुड़ियों से नियंत्रित नहीं किया जा सकता ठीक उसी प्रकार धन दौलत से ज्ञानियों को वश में करना असंभव है !

नीतिशतकम् पढ्ने के लिए इन लिंक पर क्लिक करें- https://ia600705.us.archive.org/25/items/BhartrihariNitiAndVairagyaShataka/bhartrihari_niti_and_vairagya_shatakam_text.pdf https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=forums&srcid=MDg5MTQ3ODMyMTEwOTYwOTY0NTQBMTUwMzY2MDI5NTgzMjkzNDQxODMBOUNmM2tpdXlxMTRKATAuMQEBdjI

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